Updated: October 26, 2022 12:54 pm
बस गरीबी से लड़ने का एक जुनून चाहिए।
मुंबई एक कभी न रूकने वाला शहर जहां सपनो की कभी रात नहीं होती ऐसे ही दौड़ती भागती मुंबई में एक बच्चा जिसका नाम छोटू है। छोटू के हाथ में कुछ खिलौने, फूल और दिए है। छोटू के साथ उसके हमउम्र के और भी बच्चे हैं। जिनके हाथ में भी छोटू की ही तरह खिलौने, फूल और दिए हैं। इसी बीच सिग्नल लाल होता है, रास्तों पर तेजी से चल रही गाड़ियां रूक जाती हैं। छोटू और उसके दोस्त बड़ी मशक्कत से ट्रैफिक लाईट लाल होते ही दोड़कर बीच सड़क पर भागते हैं। छोटू और उसके दोस्त रूकी हुई गाड़ियों के पास जाकर अपना सामान बेचने की कोशिश करते है । कुछ लोग उनका सामान लेते है, तो कुछ नहीं। ऐसा हर बार होता है। इसलिए सब बच्चे निराश हो जाते है, पर छोटू अपनी ही दुनिया में खुश रहता है। उसे न ज्यादा पाने की इच्छा थी और न लालच शायद यहीं वजह थी वह हर हाल में खुश रहता पर जैसे जैसे दिपावली पास आ रही थी छोटू के चेहरे पर गंभीरता आती जा रही थी।
अब दिपावली के सिर्फ 6 दिन ही बचे थे और छोटू दिन रात ज्यादा मेहनत करके ज्यादा से ज्यादा पैसा इकट्ठा करना चाहता था ताकि वह दिपावली पर अपनी मां के लिए नई सारी, बहन के लिए नई किताबे और घर के लिए नई नई चीजे खरीद सकें। छोटू दिन रात इसी सोच में गुम रहता जो वह पिछली 4 दिपावली से नहीं कर पा रहा था वो सारी कसर इस दिपावली में पूरी कर लेना चाहता था। छोटू ने दिन के अलावा रात को भी ढ़ाबो पर काम करना शुरू किया। ऐसे ही 2 दिन बीत गए पर छोटू के पास अभी तक आधे पैसे भी जमा नहीं हो पाए थे। यहीं सोचते सोचते छोटू घर पहुंच जाता है, छोटू खाना खाकर सोने की कोशिश करता है पर उसे नींद नहीं आ रही थी। नींद नहीं आने से छोटू रात को उठकर अपनी बस्ती के बाहर चला जाता है और बड़ी सी बिल्ड़िंग के आगे जाकर खड़ा हो जाता है। रात के समय उन बिल्डिंग पर लगी लाईटे उस बिल्ड़िंग के हर घर की शोभा बढ़ा रही थी। उन ब्लिड़िग की रंगत देखकर छोटू के मन में अपने बेजान सा घर नज़र आता है जिसपर न कोई सजावट हुई थी और न जाने कितने सालों से पुताई भी नहीं हुई थी। बहुत देर तक वहां खड़े रहकर छोटू वापस अपने घर आ जाता है एक नज़र अपने घर को देखकर छोटू आंखे बन्द करके लेट जाता है। छोटू आंखे बन्द करके अपने पापा की यादों में खो जाता है।
छोटू याद करता है इस बस्ती में आने से पहले उनके पास उनका अपना मकान था। छोटू के पापा का अच्छा खासा कारोबार था। छोटू के पापा छोटू को किसी चीज़ की कमी नहीं होने देते थे। सारे त्योहार यूं तो बहुत खास थे पर दिपावली छोटू के लिए काफी मायने रखती थी या यूं कहे छोटू के पापा के लिए तो कुछ गलत नहीं होगा क्योंकि जिस दिन छोटू का जन्म हुआ वह दिन भी दिपावली का था। छोटे के इस धरती पे कदम रखते ही छोटू का घर और वह अस्पताल खुशियों से जगमगा उठा। छोटू के पापा ने अपने बच्चे के जन्म पर दिल खोलकर उस अस्पताल के कर्मचारियों में उपहार बांटे और गरीबों में पैसे दान किए। ऐसा छोटू के हर जन्मदिन पर होता। जैसे जैसे छोटू बड़ा हो रहा था छोटू के पापा उसके हाथों से दान कराया करते थे और उसे हर परिस्थति में हिम्मत रखने और खुश रहने का सबक सिखाया करते थे। वक्त के गुजरने के साथ छोटू अब 10 साल का हो चुका था। इसी बीच छोटू की बहन गुड़िया का जन्म हुआ छोटू की ही तरह गुड़िया का भी जन्मोत्सब हर साल बड़े धुमधाम से मनाया जाता। छोटू का परिवार एक कुशल परिवार था किसी बात की कोई कमी नहीं थी लेकिन जब अपनो की खुशी से ही अपने जलने लग जाएं तो उस खुशी को मातम में बदलते ज्यादा देर नहीं लगती। छोटू के पापा को धीरे धीरे कारोबार में नुकसान होने लगा। कोई कुछ समझ पाता इससे पहले ही एक दुर्घटना में छोटू के पापा इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए। हालांकि पुलिस को यह मामला एक सड़क दुर्घटना लगी पर छोटू को सबकुछ समझ आ रहा था। कुछ दिन यूं ही शोक मनाते हुए बीत गए तभी छोटू के चाचा-चाची उसकी मम्मी के पास आए और कोई पेपर्स दिखाते हुए उसे 4 दिन के अन्दर घर खाली करने की चेतावनी देकर चले गए। अपनी मां के हाथ से छोटू ने वह पेपर्स लेकर पड़ा तो उसे भी अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ जिसमें लिखा था छोटू के पापा ने अपनी सारी प्रोपर्टी, यहां तक की घर भी छोटू के चाचा के नाम कर दिया है। हालांकि अपने घर को वापस पाने को लेकर छोटू की माँ ने पुलिस, कोर्ट के बहुत चक्कर लगाए पर कोई फायदा नहीं हुआ। यहीं सिलसिला लगातार 3 महीने तक चला और ऐसे ही छोटू के माँ की जितनी जमा पूंजी थी वह भी अब नहीं रही। ऐसे हालात मैं छोटू और उसकी माँ अपने घर से 2 गली दूर आकर एक बस्ती में छोटी सी खोली खरीदकर रहने लगे। छोटू की स्कूल फीस कई महीनों से भरी नहीं थी जिस बजह से छोटू का स्कूल भी छूट गया। छोटू की माँ भी दिन रात घर घर जाकर काम करना शुरू कर दिया था ताकि अपने बच्चों का पेट भर सके। दिन रात काम करने से छोटू की माँ बीमार रहने लगी। अब घर की सारी जिम्मेदारी छोटू ने सम्भालने का फैसला किया ताकि उसकी माँ को थोड़ी राहत मिल सके। छोटू ने ट्रैफिक लाइट पर रुकी गाडियों को अपनी बस्ती में बना हुआ सामान बेचना शुरू किया पर छोटू ज्यादा कमा नहीं पा रहा था। इन्हीं यादों में छोटू की आंख लग जाती है जिस बजह से छोटू सुबह देर से उठता है और बिना कुछ खाए पीए अपने काम में लग जाता है। अब दीपावली को सिर्फ 2 दिन बाकी रह गए थे। छोटू ने अपने उम्मीद के मुताबिक इतने पैसे तो जमा कर लिए थे कि वह अपनी मां के लिए सारी और बहन के लिए नयी किताबे ले सके। इसी खुशी में छोटू दुकान जाता है और अपनी माँ, बहन के लिए नयी नयी चीजें लेकर गाना गाते हुए घर जा रहा था तभी कुछ बच्चे छोटू का रास्ता रोक लिया और उससे मारपीट करके उसका हाथ से सारा सामन लेकर भाग गए। थोड़ी देर बाद छोटू घायल हालत में अपने घर पहुंचता है। छोटू की हालत देखकर उसकी माँ बहुत घबरा जाती हैं और उससे पूछती है यह सब कैसे हुआ। छोटू बहुत हिम्मत करके न चाहते हुए भी सारा किस्सा अपनी माँ को बता देता है। छोटू को बहुत चोट आयी थी पर शरीर की चोटों से ज्यादा छोटू को इस दीपावली भी अपने घर के लिए कुछ न कर पाने का अफसोस ज्यादा था। अगली सुबह दीपावली थी और छोटू का घर हमेशा की तरह बिना दीपावली की रंगत के था। आज छोटू का मन फिर उदास है।
नोट: देश में ऐसे बहुत से छोटू है जो दीपावली तो क्या अपना कोई भी त्योहार नहीं बना पाते। ऊपर से गरीबी की बढ़ती दर देखकर लगता है अगले आने वाले सालों के लिए भी हमारे देश मैं सेंकड़ों छोटू होंगे। लेकिन हम अगर एक दूसरे की सहायता करे तो ये समस्या हल हो सकती है।
अभिशाप नहीं है किसी का गरीब होना,
बस गरीबी से लड़ने का एक जुनून चाहिए।
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